बाबासाहब अंबेडकर BA, MA, MSc, DSc, LLD, PhD, BAR AT LAW जैसी अनेकों डिग्रीयां हासिल कर दुनिया के महानतम विद्वानों में शामिल थे। लेकिन फिर भी मनुवादी व्यवस्था ने उन्हें नीच समझा गया। इतिहास साक्षी है कि महाड़ के चावदार तालाब में गधे, घोड़े, कुते बिल्ली सभी पानी पीते थे। लेकिन दुनिया के महानतम विद्वान बाबासाहब अंबेडकर के पानी पी लेने पर वह तालाब अपवित्र हो जाता है एवं उसे शुद्ध करने के लिए उस तालाब में गाय का गोबर, मूत्र, दूध, दही और घी का मिश्रण डालकर शुद्ध किया गया था।
दुसरा उदाहरण बाबू जगजीवनराम जी का लेते हैं। उन्होंने 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से BSc प्रथम श्रेणी से उतीर्ण की थी। वे भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री एवं उप प्रधानमंत्री तक रह चुके थे। लेकिन मनुवादी व्यवस्था में वे नीच और अछूत ही थे। तभी तो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मूर्ति का अनावरण करने पर ब्राह्मणों ने कहा कि एक चमार के हाथों मूर्ति का अनावरण होने से मूर्ति अपवित्र हो गई है। बादमे उस मूर्ति को दूध से नहालकर एवं गो मूत्र छिड़क कर शुद्ध किया गया था।
तीसरे नंबर पर कांग्रेस की नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा की चर्चा कर लेते हैं। वह दिल्ली की जानीमानी प्रसिद्ध स्कूल जीसस एंड मेरी स्कूल से पढ़ी हुई एवं पंजाब विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त महिला है। इसके अलावा केन्द्र सरकार में मंत्री पद पर रह चुकी है। लेकिन मनुवादी व्यवस्था उन्हें भी नीच और अछूत मानती है तभी तो गुजरात के द्वारिका मन्दिर के मुख्य पुजारी को जब पता चला कि मंत्री महोदया अनुसूचित जाति की हैं तो उन्हें मन्दिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया। कुमारी शैलजा महोदया ने भरी संसद में फुट फूटकर रोते हुए अपनी व्यथा बयां की थी।लेकिन मनुवादी व्यवस्था के चलते कोई मजाल थोड़ी है कि वहां के मंदिर पुजारी पर कोई कार्यवाई की जा सके।
अब पी. एल. पुनिया जी की बात करते हैं, वे प्राचीन भारतीय इतिहास में पी. एच. डी. होल्डर हैं। तथा उत्तर प्रदेश कैडर के IAS अधिकारी रहते हुए मुख्य सचिव पद को सुशोभित कर चुके हैं। साथ ही राजनीति में कांग्रेस सांसद चुने जा चुके हैं जब वे अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। लेकिन मनुवादी व्यवस्था के सामने इतनी बड़ी शख्सियत भी कोई मायने नहीं रखती है। बल्कि उन्हें भी नीच और अछूत समझकर उड़ीसा के एक मन्दिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था।
अब सबसे ताजा उदाहरण हमारे देश के वर्तमान राष्ट्रपति महामहिम रामनाथ कोविंद जी का लेते हैं मनुवादी व्यवस्था के कारण 18 मार्च 2018 को उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने उन्हें नीच और अछूत मानकर मन्दिर के गर्भगृह में जाने से रोक दिया तथा पंडितों ने राष्ट्रपति जी पत्नी श्रीमती सविता कोविंद के साथ धक्का मुक्की एवं बदसलूकी की थी जिसके चलते यह मुद्दा मीडिया में भी चर्चा में आ गया था।
उपरोक्त पांचो उदाहरणों से यह साबित हो जाता है कि जब तक हम लोग मनुवादी व्यवस्था को ढोते रहेंगे तब तक नीच और अछूत ही समझे जाते रहेंगे, बेशक हम IAS से लेकर संविधान निर्माता बन जाएं या फिर संवैधानिक व्यवस्था के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक क्यों न पहुंच जाएं। बाबा साहेब अंबेडकर ने एक बार नहीं बल्कि बार बार कहा था कि जब तक तुम लोग हिंदू धर्म में बने रहोगे तब तक नीच और अछूत समझे जाते रहोगे।
बाबासाहब अंबेडकर इस प्रकार की व्यवस्था को बिलकुल भी बर्दाश्त नही करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने इस सामाजिक व्यवस्था का परिवर्तन करने का उनका मिशन रहा। उनका मिशन जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज की स्थापना करने का था। लेकिन शोषित समाज के लोग अभी तक बाबा साहब के मिशन को ठीक से समझ नहीं पाये हैं। जिसका नतीजा रोजाना अखबारों में आप पढ़ ही रहे हैं।
सीनियर IAS उमराव सिंह जी सलोदिया और हाई कोर्ट के जज सी. एस. कर्णन के साथ जो हुआ वो भी आप सभी से छुपा हुआ नहीं है। इतने बड़े स्तर पर भी जातीय भेदभाव हो सकता है तो सबसे नीचले स्तर वालों का तो बुरा हाल होना निश्चित है। विकास स्थायी नहीं रहता है लेकिन भारत में ये सामाजिक जातीय व्यवस्था सैंकड़ों वर्षों से स्थायी बनी हुई है, बाबासाहब अंबेडकर की सोच थी कि अपमान भरे 100 वर्ष के जीवन जीने से सम्मान के 2 दिन की जिंदगी जीना बेहतर है। लेकिन जब तक आप इनकी बनाई गई जातियों का हिस्सा बने रहोगे तब तक आप नीच और अछूत माने जाते रहोगे।
बाबा साहेब का कहना था कि हम आदमी हैं और आदमी को सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया। जब प्रकृति भेदभाव नहीं करती है तो फिर जाति के आधार पर आदमी को नीच और अछूत कैसे बनाया जा सकता है। बाबासाहब अंबेडकर ने भारत के संविधान में सभी मनुष्यों को बराबरी का दर्जा देने का क्रांतिकारी कानून बना दिया था, लेकिन इसके बावजूद भी वही पुरानी व्यवस्था अभी भी लागू है। कारण कि अभी भी संविधान को लागू न कर मनुस्मृति से ही देश को चलाने का प्रयास किया जा रहा है।
बाबा साहेब अंबेडकर भलीभाँति जानते थे कि कानून के बल पर सामाजिक व्यवस्था में बदलाव आना मुश्किल है। इसलिए उन्होंने आह्वान किया था कि ऐसे धर्म को छोड़ दो जिसमें तुम्हें कुते बिल्ली से भी नीचा समझा जाता हो। बाबासाहब अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अशोक दशमी के दिन नागपुर की दीक्षा भूमि पर 10 लाख अनुयायियों के साथ हिंदू धर्म को छोड़कर बौद्ध धम्म स्वीकार कर लिया था। और पूरे बहुजन समाज को संकेत दिया था कि जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज का निर्माण करने का सबसे उत्तम मार्ग यही है। अब आप समझ गये होंगे कि बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन सामाजिक विकास की बजाय सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन का अधिक था।
लेखक – मिथूनकुमार नागवंशी (प्रकल्प अधिकारी, समता एवं बार्टी)